Saturday, June 30, 2007

एहसास

एहसास
अभी अभी कुछ देर पहले मुझे ऐसा एहसास हुआ है।
की यही उनकी आँचल कि खुशबू है ......
जिसके साये में मुझे उमर भर रहना है।
की यही उनकी कदमो कि आहट है .....
जिसके साथ साथ मुझे उमर भर चलना हैं।
इस समय मेरे कमरे मैं खामोशी है...
लकिन अभी अभी कुछ देर पहले मुझे ऐसा एहसास हुआ है ।
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उनकी वो मासूमियत भरी बातें....
मैं कई सदियों तक सुन सकता हूँ ।
उनकी वो बहुत खूबसूरत सी आँखें...
जिनको मैं आपना ताजमहल कह सकता हूँ।
आज ज़िंदगी तो हाथो से छुआ है मैं...
जबसे उनके हाथो को अपने हाथो मैं लिया है मैंने।
इस वक़्त मेरे दोनो हाथ खाली हैं॥
लकिन अभी अभी कुछ देर पहले मुझे ऐसा एहसास हुआ है।
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Raman kr.

Friday, June 29, 2007

दस्तक

दोस्तो कुछ पंक्तिया लिखी हैं,
आशा है आपको पसंद आएँगी।

दस्तक

ना जाने क्यो ये मन आज उदास है,
क्यो उसकी यादें बिना दस्तक दिए चली आती हैं।
उसे भूलाने कि सारी कोशिशें नाकाम हो गयी हैं,
अब मेरी भी गमो से अच्छी पहचान हो गयी है।
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ऐसा लगता है जैसे कल ही कि बात हो,
उसका लड़ना उसका झगड़ना .
उसकी वो हँसी.... और उसका वो प्यार करना,
मेरे नाम से अपना नाम जोड़ना।
साथ जीने मरने कि कस्मे भी खायी थी,
ज़िंदगी से मेरे पहचान उसी ने करवायी थी।
लकिन उसने मेरा साथ छोड़ दिया,
अपना क्या हुआ वादा भी तोड़ दिया।
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मैंने भी इस दुनिया को छोड़ दिया होता,
तुमसे किया हुआ वादा थोड़ दिया होता।
लकिन एक बार फिर तुम्हारी हँसी सुनायी दी है,
अंधरे मैं एक राह दिखायी दी है।
लकिन तुमने मेरा साथ क्यो छोड़ा,
जाओ मैं तुमसे बात नही करता।
अब कभी मेरे खयालो मैं मत आना,
तुमने मेरे प्यार को कभी नही जाना।
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अरे .... मेरे इन आँखों को क्या हुआ,
इन्होने कभी रोना नही सीखा,
फिर आज क्यो मेरी आंखें नम हैं,
शायद तुम्हे न देख पाने का इन्हें गम है।
सुबह से अब शाम होने को आयी है,
सारे कमरे मैं एक आजीब सी खामोशी छायी है।
अब सोचता हू कि उठु और कुछ काम करु,
लकिन एक बार फिर तेरी याद चली आयी है।
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रमण कुमार

पन्थी

पन्थी

पन्थी हु मै उस पथ का
अन्त नहीं कोइ जिस्का
आस मेरे है जिसकी दिशा
आधार मेरे मन का
पन्थी हु मै उस पथ का
सन्गी साथी मेरे
मुझको राह दिखाए
पल छीन के कुलधारे
पथिक मेरे मन के सब तारे
और नीला आकाश गगन का. .

दोस्त


खुशी भी दोस्तो से है गम भी दोस्तो से है ?
टकरार भी दोस्तो से है प्यार भी दोस्तो से है ?
रूठना भी दोस्तो से है मनाना भी दोस्तो से है ?
बात भी दोस्तो से है मिशाल भी दोस्तो से है ?
नशा भी दोस्तो से है शमा भी दोस्तो से है ?
ज़िन्दगी की शुरुवात भी दोस्तो से है ?
ज़िन्दगी मै मुलाकात भी दोस्तो से है ?
मोहब्ब्त भी दोस्तो से है ईनायत भी दोस्तो से है ?
काम भी दोस्तो से है नाम भी दोस्तो से है ?
ख्याल भी दोस्तो से है अर्मान भी दोस्तो से है ?
ख्वाब भी दोस्तो से है माहोल भी दोस्तो से है ?
यादे भी दोस्तो से है मुलाकाते भी दोस्तो से है ?
सपने भी दोस्तो से है अपने भी दोस्तो से है ?
या यू कहो यारो अप्नी तो दुनियाँ ही दोस्तो से है ?

Wednesday, June 27, 2007

जिन्दगी की दौड़ में करना क्या है?

जिन्दगी की दौड़ में करना क्या है
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शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?
सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है
मालूमपर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?
इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है
जानते तक नहीं.
मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?
कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?
तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या
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दोस्ती


दोस्ती

क्या खबर तुम को दोस्ती क्या है
ये रोशनि भी है अन्धकार भी है
बहुत अन्मोल एक हीरा भी है
ख्वाहिसो से भरा जैजबात भी है
दोस्ती एक हसीन खवाब भी है
पास से देखो तो सराब भी है
दुख मिल्ने पे यह अज़ाब भी है
और यह प्यार का जाबाज़ भी है
दोस्ती यू तो माया जाल भी है
एक हकीकत भी है खयाल भी है
कभी ज़मीन कभी फ़लक भी है
दोस्ती झूट भी है सच भी है
दिल मै रह जाय तो कस्क भी है
कभी ये हार कभी जीत भी है
दोस्ती साज भी सन्गीत भी है
शेर भी नज़ाम भी गीत भी है
वफ़ा किय है वफ़ा भी दोस्ती है
बस इत्न सम्झ लो की तुम
प्यार कि इन्तेहा भी दोस्ती है


Raman kr.

क्या लिखू

क्या लिखू
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क्या लिखूँकुछ
जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू
या सापनो की सौगात लिखूँ
मै खिलता सुरज आज लिखू
या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ
वो डूबते सुरज को देखूँ
या उगते फूल की सान्स लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखू
या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखू
या दूरी का ऐहसास लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ
या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ
या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ
या आन्खो की मै बरसात लिखूँ
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ
या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
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Raman kr.